मानसिक बीमारियाँ यानि व्यक्ति की सोच, भावना, मन, दूसरो से सम्बंध रखने की क्षमता और रोजमर्रा कामकाज के विकार है. मानसिक बीमारीयों के विभिन्न प्रकार होते है. इनका इलाज किया जा सकता है और ठीक होना संभव है. दवाईयाँ और मनोचिकित्स उपचार के लोकप्रिय तथा असरदार तरीके के उदाहरण है. उपचारों के परिणाम किसी भी शारीरिक बीमारी की तरह है जो बीमारी के प्रकार पर निर्भर करता है.
स्वास्थ्य की अवधारण में शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ होना शामिल है. मस्तिष्क और शरीर एक ही सिक्के के दो पहलू है, और इसीलिए उनकी गड़बड़ी एक-दूसरे से सम्बंधित है. "मस्तिष्क" विशुद्ध रूप से एक अध्यात्मिक संस्था नहीं है, बल्कि यह एक संरचना के रूप में मस्तिष्क का हिस्सा बनता है. अतः, शरीर के किसी भी हिस्से की तरह यह बीमारी का मुद्दा हो सकता है. हम हमेशा डॉक्टरों, दवाइयाँ और शारीरिक रोगो को एक दूसरे से जोड़ते रहते है. दुर्भाग्य से, मानसिक विकारों की विशुद्ध रूप से गैर-वैद्यकीय और गैर-वैज्ञानिक तरीकों से मानसिक विकारो को देखा जाता है जिससे गलत धारणाएँ उत्पन्न होती है.
मनोचिकित्सक भावनात्मक गड़बड़ी के साथ विचार और व्यवहार की गड़बड़ी दूर करता है. बीमारी की वजह से इन क्षेत्रो में परिवर्तन हो जाता है जोकि "पागलपन" नहीं है. "पागलपन" यह लोगो द्वारा इस्तेमाल की जानेवाली अपरिपक्व संज्ञा है जिससे वास्तविक रूप से भावनात्मक कठिनाइयों से पीड़ित लोगो के लिए कलंक उत्पन्न होता है.
लोगों की यह एक आम गलतफहमी होती है की सभी मानसिक रोगी मरीज़ हिंसक होते है अथवा एक अजीबोगरीब तरह से व्यवहार करते है. चलचित्र एवं टी.वी. द्वारा चित्रित किए गये अतिरंजित हिंसक तथा हास्यास्पद व्यवहार से इस गलतफहमी को और भी गहरा कर दिया है की सभी मानसिक बीमारियों में लोग अपने ऊपर नियंत्रण खो देते है.
मानसिक बीमारी से ग्रस्त मरीजों की कुल संख्या में से, बहुत कम लोगो का व्यवहार असंतुलित होता है. ज्यादातर मरीजों की पीड़ा बाहरी दुनिया को दिखाई नहीं देती.
दुर्लभ, गलतफहमी, डर और सामाजिक कलंक इसके प्रमुख कारन है. कुछ मानसिक मरीज का चित्रण और व्यक्तिगत अनुभव हमारे मन पर अमिट छाप छोड़ जाता है.
व्यक्तिगत स्तर पर, हम यह विश्वाश करते है की हर वक्त हमें मन पर नियंत्रण होना चाहिए. आमतौर से यह गलतफहमी होती है की मानसिक मरीज "कमजोर मन" के कारन अपने ऊपर नियंत्रण खो देते है. इस वजह से लोग ऐसा मानते है "में इनका शिकार नहीं हो सकता".
इसकी स्वीकृति तब बढ़ती है जब हम यह विश्वास करते हैं की मानसिक बीमारीयाँ किसी अन्य शारीरिक बीमारियों की तरह ही है जो किसी को भी हो सकती है.
यह अनुमान लगाया गया है की १५-२०% लोकसंख्या को अपने जीवन में किसी न किसी तरह की मानसिक तनाव का अनुभव होता है। विश्व स्वस्थ संगठन (WHO) द्वारा यह अनुमान लगाया गया है की २०३० के अंत तक असर के हिसाब से डिप्रेशन को पहला स्थान प्राप्त होगा।
कुछ लोग कभी भी इलाज नहीं करते है और कुछ लोग केवल अवैद्यकीय उपचार पर ध्यान देते है (जैसे की झाड़-फूँक), यह आवश्यक नहीं है की जो लोग वैद्यकीय उपचार ले रहे है वे सही विशेषज्ञ द्वारा ले रहे है. ऐसे मरीज जिन्होंने पहले उपचार करवाया है वे भी शायद ही ऐसे रहस्य को बताते है.
इतनी अधिक व्यापकता के बावजूद, विभिन्न कारणों से वास्तव में उचित देखभाल प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। इससे जनता में गलत धारणा बनती है कि मानसिक बीमारियाँ दुर्लभ हैं.
मनोचिकित्सक ऐसा वैद्यकीय अर्हताप्राप्त चिकित्सक है जिसने मनोचिकित्सा में स्नातकोत्तर प्रशिक्षण प्राप्त किया है. वह मानसिक विकारो का निदान कर सकता है और उसके ऊपर मनोवैज्ञानिक रूप तथा दवाइयों के हस्तक्षेप से इलाज कर सकता है.
मनोवैज्ञानिक ऐसा गैर-वैद्यकीय अर्हताप्राप्त पेशेवर है जिसने मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर प्रशिक्षण प्राप्त किया है. वह मनोवैज्ञानिक परिक्षण कर मनोचिकित्सकीय तकनीक का (दवाइयों के अलावा) उपयोग कर लोगो की मदद कर सकते है.
एक मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता को मानसिक स्वस्थ के सामाजिक पहलुओ का मूल्यांकन तथा प्रबंधन करने के बारे में प्रशिक्षण प्राप्त रहता है.
काउंसिलर एक पेशेवर है जो ध्यानकेंद्रित सलाह देता है. ऊपर उल्लेख किये हुए सभी पेशेवरों के द्वारा काउंसिलिंग किया जा सकता है.
मानसिक स्वस्थ पेशेवर (MHP) के दाल के अन्य सदस्य- ,मनोचिकित्सक परिचारिका, व्यावसायिक चिकित्सक और विशेष शिक्षक है.
एक न्यूरोलॉजिस्ट (न्यूरोफिज़ीशियन अथवा न्यूरोसर्जन) ऐसा वैद्यकीय विशेषज्ञ है जो शारीरिक कारणों की वजह से होनेवाले मस्तिष्क के विकारो (झटका, गाँठ, संक्रमण आदि) पर इलाज करता है.
प्रशिक्षित मनोचिकित्सक के साथ वैद्यकीय साक्षात्कार द्वारा आपके समस्या के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल कर सकते है. अन्त्य स्त्रोत जैसे की पारिवारिक सदस्य और दोस्तों से प्राप्त की हुई जानकारी डायग्नोसिस करने में सहायता करती है. मनोचिकित्सक द्वारा मूड, विचार तथा बरर्ताव के मापदंड का मूल्यांकन किया जाता है. डायग्नोसिस तक पहुंचने के लिए इनकी तुलना दर्जाप्राप्त मानक के साथ की जाती है.
डॉक्टर द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन वैद्यकीय इतिहास तथा परीक्षण के द्वारा किया जाता है. जरुरत होने पर, जाँच करवाने के लिए कहा जाता है.
मानसिक बीमारी में कई आंतरिक तथा बाह्य कारकों का प्रभाव मस्तिष्क रसायनशास्त्र पर होता है जिससे मस्तिष्क के कामकाज में असंतुलन पैदा होता है. यह ब्रेन स्कैन में दिखाई नहीं देता है. किन्तु, यदि लक्षणों की वजह सकल मस्तिष्क विकृति (झटका या गांठ) होने का संदेह है, तो सीटी अथवा एमआरआई सहायक हो सकता है.
यह एक प्रमाणित परीक्षण है, ये सब मनोवैज्ञानिक टेस्ट है (मेडिकल नहीं), जो लोगो के मस्तिष्क और विचार के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करने के लिए बनाया गया है, जिसमे प्रश्न, चित्र, दॄश्य, पहेली और कौशल्य मूल्यांकन का समावेश है. यह एक प्रशिक्षित वैद्यकीय मनोवैज्ञानिक द्वारा किया जाता है. यह परीक्षण कुछ मानसिक स्थितयो को समझने और डायग्नोज करने में अत्यंत मददगार होता है.
व्यक्ति का सम्पूर्ण मूल्यांकन जरूरी होता है. व्यक्ति का दैनंदिन कामकाज, गाढ़ जीवन और तनाव जिनसे बीमारी पैदा होती है उनकी जानकारी महत्वपूर्ण है. समस्या के सामाजिक तथा अनुवांशिक पहलुओं को समज़ने के लिए पारिवारिक इतिहास की जानकारी जरूरी है. इसके अलावा पारस्परिक संघर्ष तथा व्यक्ति के व्यक्तिमत्व की संरचना की भूमिका भी महत्वपूर्ण है.
सभी मनोचिकित्सकों द्वारा पालन की जानेवाली नैतिकता 'गोपनीय' है. इसीलिए, बिना किसी झिझक के ज्यादा से ज्यादा जानकारी देनी चाहिए। प्रबंधन के दृष्टिकोण से अन्य डॉक्टर अथवा मनोवैज्ञानिकों के साथ कुछ जानकारी साझा करने की आवश्यकता हो सकती है.
मरीज के करीबी लोगो से ढेर सारी सम्बंधित जानकारी हासिल की जा सकती है. एक अत्यधिक तनावग्रस्त, उलझा हुआ अथवा हिंसक मरीज सही जानकारी देने की स्थिति में नहीं होता है. बेहतर परिणाम के लिए परिवार के सदस्यों द्वारा बीमारी को समज़ना, उचित निर्णय लेना और इलाज की निगरानी करना महत्वपूर्ण है.
आप बिलकुल सही है ! हर संस्कृति का अपना एक अलग दृष्टिकोण होता है, और इसीलिए उसके कामकाज की शैली की तुलना नहीं की जा सकती.
कुछ लोग अभी भी मनोचिक्तिसक का सम्बन्ध "काउच" के इस्तेमाल के साथ जोड़ते है. यह अभ्यास का एक तरीका है जिसका उपयोग "मनोविश्लेषण" के लिए किया जाता है. आधुनिक मनोचिकित्सा में मनोविश्लेषण की एक सीमित भूमिका है.
यह एक चुनौती है, और सबसे बेहतर विकल्प यह है की मनोचिकित्सक के साथ पहले चर्चा करनी चाहिए ताकि वह आपके पास उपलब्ध रहनेवाले विविध विकल्पों का मार्गदर्शन कर सकते है.
इसमें किसी दोस्त, परिवार के डॉक्टर, सामजिक संस्था, अथवा किसी सक्षम प्राधिकारी से सहायता प्राप्त कर सकते है. दवाइयाँ, डॉक्टर द्वारा घर में साक्षात्मक, अथवा आपातकालीन सेवाओं द्वारा सीधे अस्पताल में भरती करने के विकल्प उपलब्ध है.
एक गंभीर डिप्रेशन का मरीज शायद मनोचिकित्सक के पास जाने के लिए अनिच्छुक होगा. ऐसे मरीजों को चालाकी से सँभालने की जरुरत होगी. ऐसी स्थिति में स्वस्थता हासिल किए हुआ मरीज, जो इलाज लेना नहीं चाहता उसके मामले में जल्द से जल्द कृति करनी चाहिए ताकि अप्रिय कदमो से बचा जा सके.
किसी भी मानसिक आपात स्थिति में लक्षणों के शीघ्र नियंत्रण हेतु अल्पकाल के लिए अस्पताल में भर्ती होने का विचार किया जा सकता है. कई बार विविध कारणवश मरीज पर घर में इलाज करना संभव नहीं होता इसीलिए कुशल कर्मचारीयो द्वारा अस्पताल की आस्थापना में निगरानी आवश्यक है. ईसीटी जैसे इलाज के लिए भी वैद्यकीय सुविधाओं की जरुरत होती है.
गंभीर, पुरानी, ठीक न होनेवाली स्थिति में अथवा ऐसे मामलों में जब मरीज को घर पर पर्याप्त निगरानी प्राप्त नहीं हो सकती, तब दीर्घकाल के लिए अस्पताल में भर्ती होना अथवा संस्था में निगरानी प्राप्त करने का विचार किया जा सकता है. कुछ नशामुक्ति के इलाज के लिए अस्पताल में नशीले पदार्थो का शरीर से परिष्कार के लिए भर्ती किया जाता है.
उपलब्ध विकल्पों को मोटे तौर पर निम्नलिखित श्रेणियो में वर्गीकृत किया जा सकता है :-
१. ज्यादातर सरकारी और महानगरपालिका के अस्पतालों में मनोचिकित्सक और अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर (MHP) कर्मचारी होते है. बड़े शैक्षणिक अस्पतालों में, अत्याधुनिक मनोचिकित्सा विभाग होते है जहा MHP का पूरा दल होता है. ऐसे विभागों में चौबीसों घंटे आपातकालीन सेवाएँ प्रदान की जाती है और दाखिल होने की सुविधा होती है. इन अस्पतालों में पड़ौसी जिलों तथा राज्य के अंतर्गत इलाको के मरीजों को भी सेवा प्रदान की जाती है.
२. राज्य शासन द्वारा चलाई जा रही संस्थाओ (मानसिक अस्पताल) में अपने बाह्य मरीज विभाग होते है और अदालत के आदेश के माध्यम से मरीज दाखिल होते है. ऐसे अस्पतालों में अधिकांश मरीजों को दाखिल होने की सुविधा होती है और MHP के दल द्वारा प्रबंधन किया जाता है. इन संस्थाओ का भी विचार अस्पताल में दीर्घकालीन भर्ती होने के लिए किया जा सकता है.
३. लाइसेंस प्राप्त शुश्रुषागृह (निजी) अथवा अस्पताल (निजी).
४. निजी साधारण अस्पतालों द्वारा MHP के साथ मूलभूत परामर्श और सन्दर्भ प्रदान किया जा सकता है. ऐसे अस्पतालों में आपात्कालीन अथवा दाखिल होने की सुविधा हो भी सकती है और नहीं भी.
५. निजी चिकित्सक : विभिन्न क्षेत्रो के MHP द्वारा निजी तौर पर परामर्श तथा उपचार प्रदान किये जा सकते है. उनमे से कुछ अकेले रूप में अथवा दूसरो के साथ दल बनाकर काम करते है. वह अक्सर किसी अस्पताल या गैर-सरकारी संगठनो से जुड़े होते है.
६. धर्मादाय दवाखाना : ट्रस्ट द्वारा संचालित अस्पतालों में रियायती डॉ पर देखभाल की जाती है. लगाया जानेवाला शुल्क सरकारी तथा निजी आस्थापना के बीच की मात्रा है. सेवाओं का सवरूप उनके आकर तथा आस्थापना पर निर्भर होता है.
७. नशामुक्ति क्लिनिक,चाइल्ड गाइडेंस क्लिनिक, पुनर्वास केंद्र और डिमेंशिया मरीजों के रहने की व्यवस्था भी सरकारं एन.जी. ओ. या निजी प्रोडेशनल द्वारा चलाए जाते है.
मनोवैज्ञानिक समस्या कमजोरी की निशानी नहीं है. यह मस्तिष्क के रसायन में बदलाव जिन्हे न्यूरोट्रांसमीटर कहा जाता है उसपर विभिन्न प्रभावों के कारण होते है. वह किसी भी व्यक्ति को उम्र, लिंग, शिक्षा, वित्तीय स्थिति अथवा सामाजिक समर्थनों के बिना प्रभावित कर सकती है.
मानसिक बीमारी से प्रभावित व्यक्ति शारीरिक तौर पर स्वस्थ दिखाई देता है लेकिन लक्षण व्यक्ति की प्रकृति बदल देते है और उससे अलग तरीके से बातचीत तथा व्यव्हार करवा सकते है. व्यक्ति की पहचान में परिवर्तन हो जाने से, काला जादू/भूत-प्रेत की बाधा ऐसी बातो में समाज का विश्वास बन जाता है. वैज्ञानिक प्रगति से हमें यह समज़ने में सहायता प्राप्त हुई है की मानसिक बीमारीयाँ जैविक (जनुक तथा मस्तिष्क), मनोवैज्ञानिक और सामाजिक घटको के परस्पर व्यव्हार के कारण होती है और उनसे जज्बात, सोच और आचरण इन तीन स्थानों पर प्रभाव पड़ता है.
तपेदिक और मलेरिया जैसी वैद्यकीय बीमारियों का कारन हम आसानी से समज सकते है. चूँकि हम मानसिक बीमारियों में क्या गलत हुआ है वह समझ नहीं पाते, ढेर सारे अन्धविश्वास और धार्मिक विश्वासों द्वारा अतीत में स्पष्टीकरण दिया गया है. मानसिक बीमारियों में अन्य वैद्यकीय बीमारियों जैसा दृश्य अथवा मूल्यांकन करनेयोग्य विषमताएँ नहीं होती है, जिससे ऐसी बीमारियों की वजहों को रहस्यमयी रूप प्रदान किया है. इसी तरह के दौर में, बीमारी को स्वीकार करने और उसका उपचार करने के बजाय लोग "पितृदोष", और "कर्म" में लगे रहते है.
हम में से कई लोग अपनी कठिनाईओ और कमी को अलौकिक और रहस्यमयता के साथ जोड़ने का प्रयास करते है और वह अन्धविश्वास में परिवर्तित हो जाती है. यही बात मानसिक बीमारीयो के साथ होती है.
प्रमुख मानसिक बीमारियों में, हानी इतनी गंभीर होती है की कोई भी ऐसी सलाह पर ;उद्देश्यपूर्ण काम नहीं कर सकता है. वैद्यकीय और मनोवैज्ञानिक उपचारो को खुले दिमाग से स्वीकार करना चाहिए. आप टूटे हुए पैर के साथ कसरत नहीं कर सकते.
ये सब लक्षण जिन्हे अलौकिक शक्ति माना जाता है, वास्तव में यह लोगो के अस्वस्थ होने की निशानी है. बीमारी का विवरण मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो और वैज्ञानिक तर्क के आधार पर किया जा सकता है. कुछ ऐसे प्रकरणों में "तांत्रिक" अनुष्ठानो द्वारा अस्थायी निजात पायी जा सकती है.
आमतौर पर, इस तरह के लक्षण अनसुलझे संघर्ष की वजह से होते है. इसीलिए, जबतक उनपर दवाइयाँ और मनोचिकित्सा के साथ इलाज नहीं किया जाता तब तक वह दोहराते रहते है.
कुछ लोगो में, जैविक और आनुवंशिक घटकों के प्रबल होने के कारण, पहचानने योग्य तनाव की अनुपस्थिति में भी मानसिक बीमारी की ओर अग्रसर होते है. बीमार होने के लिए तनाव के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध होना जरूरी नहीं है.
मानसिक बीमारी विभिन्न कारणों की वजह से विक्सित होती है. आनुवंशिक घटक उसमें से एक है. आनुवंशिक गुण मानसिक बीमारी के लिए एक जोखिम प्रदान करते है. जोखिम शायद बीमारी में प्रवर्तित हो सकती है अथवा नहीं भी जोकि कई अन्य बाहरी घटको पर निर्भर है. इस तरह, मानसिक बीमारी का विकास केवल पारिवारिक इतिहास पर भी निर्भर नहीं है.
हम में से हर एक तनाव का अलग रूप से सामना करते है. मानसिक विकार एक लम्बे समय (सप्ताह) के कालावधी के लिए रहनेवाले लक्षणों के समुच्चय द्वारा परिभाषित किया गया है जो हमारी काम करने की शक्ति और सामाजिक बातचीत करने में हमें असमर्थ करते है. उपचारो के द्वारा सामान्य स्थिति लौटने का प्रयास किया जाता है जो बदले में तनाव से लड़ने में मदद करते है. उपचारो को प्राथमिकता कारणों को ध्यान में न रखते हुए दी जाती है. यदि कोई हड्डी टूट जाये, तो हम उसकी वजह पर बहस नहीं करते बल्कि उसे ठीक करने में लग जाते है.
जैसे शारीरिक बीमारी किसी को भी हो सकती है, वैसे ही मानसिक बीमारी उम्र, लिंग, शिक्षा, वित्तीय स्थिति अथवा समर्थन पर निर्भर न होते हुए किसी को भी हो सकती है. उच्च बुद्धिमत्ता मानसिक बीमारियों के लिए सुरक्षा नहीं है. यहाँ तक की एक डॉक्टर जिसको मानसिक बीमारियों के बारे में ज्ञान है उनके लिए भी कोई प्रतिरक्षा नहीं है.
धारणा यह है की मस्तिष्क के जीव विज्ञानं में तनाव दीर्घकालीन परिवर्तन उत्पादित कर सकता है, जिससे यदि समस्याऐ चली गई होंगी तो भी ऐसे परिवर्तन रहते है. इसीलिए, कोई भी अपने पूरे संसाधनों का उपयोग कर और तनावपूर्ण कालावधी में मुकाबला कर सकता है फिर भी उसके लक्षण सँचिय तनाव का असर और थकानभरी भंडार की वजह से बाद में भी महसूस होते रहते है.
हम में से हर एक घटना के साथ कैसे प्रतिक्रिया करता है वह हमारी मानसिक धारणा, मुकाबला करने का कौशल्य और पद्धति, गाठ अनुभव और हमारी समर्थन प्रणाली पर निर्भर रहता है. जब हम तनाव से पीड़ित रहते है तब हम सकारात्मक सोचने में असमर्थता पाते है और मस्तिष्करसायन परिवर्तक की निष्पत्ति के कारन मस्तिष्क के बीमार हालत में होने की वजह से भूतकाल के बारे में सोचते रहते है. कोई भी मात्र इच्छा करने से इसे दूर नहीं कर सकता.
मन और शरीर जटिल रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है. अनसुलझे संघर्ष और मनोवैज्ञानिक संकट हमेशा शारीरिक अथवा दैहिक शिकायतों की तरफ अग्रसर करते है. आम उदहारण सिरदर्द अथवा अक्सर पेट में गड़बड़ी होना है जिसके लिए जाँच के बावजूद कोई वजह नहीं पायी जाती. इसके अलावा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दमा आदि जैसे कई बीमारियों की शुरुआत, संसर्ग और प्रभावित करने के लिए मनोवैज्ञानिक घटक ज्यादातर जाने जाते है.
कोई भी ऐसी स्थिति जो भारी समझी जाती है वह तनाव उत्पन्न करती है. तनाव की वजह अलग-अलग व्यक्ति में बदलती है. वह कई तरह से व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है - मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और व्यावसायिक। यह मानसिक और शारीरिक बीमारियों को बढ़ा देती है.
तनाव, चिंता और डिप्रेशन ऐसे विकार पैदा कर सकते है जिनसे शारीरिक समस्याये अथवा कठिनाइयाँ होती है. इन विकारों की जाँच के बाद, कोई भी शारीरिक वजह नहीं पायी गई. ऐसे विकारों को मनोचिकित्सक द्वारा बेहतर तरीके से ठीक किया जा सकता है.
दीर्घ कल से मदिरापान सामजिक, वित्तीय और व्यावसायिक समस्याओ की ओर अग्रसर करता है. लोग शराब बंद करने के बाद निद्रानाश और कंपन के डर से शराब पीना जारी रखते है. यह एक निदानात्मक मनोरोग समस्या है जिसके लिए असरदार उपचार उपलब्ध है.
अवसाद (डिप्रेशन) आम मनोरोग है जिसमे लगातार मन नहीं लगना, आत्मविश्वास, रूचि और ऊर्जास्तर में कमी, किसी के बारे में तथा उसके वातावरण के बारे में नकारात्मक विचार, और समय समय पर आत्महत्या का बर्ताब है. यह सभी सामाजिक वर्ग और हर आयु समूहों है.
डिप्रेशन का इलाज एन्टी डिप्रेसेंट, मनोचिकित्सा और इलेक्ट्रोकन्वल्सिव चिकित्सा द्वारा प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.
काउंसिलिंग द्वारा ऐसे मुद्दों का पता लगाया जा सकता है जो अवसाद के लिए जिम्मेदार है.
यह उन्माद नामक मनोरोग की समस्या लग रही है. अवसाद के विपरीत, उन्माद की विशेषताएँ होती है जैसे की अत्यधिक उत्साह, अत्यधिक गतिविधि और लापरवाह बर्ताब. इस पर मनोरोग हस्तक्षेप द्वारा इलाज किया जा सकता है. मरीजों के मूड में बदलाव और बार-बार इसे होने से रोकने के लिए मानसिक हस्तक्षेप जैसे की दवा, इ.सी. टी. और मूड स्टेबलाइज़र का उपयोग किया जाता है.
सिजोफ्रेनिया का शक दूर करने के लिए उसका मूल्यांकन करना होगा. सिजोफ्रेनिया यह एक सातत्यपूर्ण झूठा (भ्रम), आवाज सुनाई देना या दृश्य दिखाई देना (मतिभ्रम), अजीब व्यवहार, और सामाजिक तथा व्यावसायिक पतन आदि विशेषताओं वाला मनोरोग है. यह एक पुरानी समस्या है और उसे नियमित रूप से दवाइयों का इस्तेमाल कर ठीक किया जा सकता है. यह विकार औसतन १०० व्यक्ति में से १ व्यक्ति में पाया जाता है.
बिना किसी वजह के अत्यधिक चिंता करने को एन्जायटी कहा जाता है. निश्चित वस्तुओ और स्थिति के बारे में सातत्यपूर्ण बेचैनी निर्माण करनेवाले विचार जो एम्वाइन्स बर्ताव करने की ओर अग्रसर होते है उन्हें अनैसर्गिक भय (फोबिया) कहा जाता है. इसे समस्या में डावाओ और मनोचिकित्सा के संयोजन की जरुरत होती है.
यह एक सामान्य रूप से होनेवाली समस्या है जिसे पैनिक डिसॉर्डर कहा जाता है. सभी तरह के शारीरिक लक्षण के साथ अचानक पैनिक अटैक आता है. उपरोक्त सभी लक्षण हृदय विकार का भ्रम आसानी से पैदा कर सकता है. किसी अन्त्य चिंता के विकारो की तरह इसे भी दवाइयाँ और मनोचिकित्सा की आवश्यकता है.
भुलक्कड़पन की समस्या कुछ उम्र से भी सम्बंधित है. जब वह अत्यधिक होती है और दैनिक दिनचर्या की गतिविधियों में हानी से सम्बद्न्हित है, तो उसे मनोभ्रंश (डिमेंशिया) कहा जाता है. मनोभ्रंश अक्सर नकारात्मक अथवा उलझनपूर्ण व्यव्हार, आक्रामकता, अवसाद अथवा मानसिकता के साथ जुड़ा हुआ होता है. इसका उपचार समर्थन है, और व्यव्हार को नियंत्रित करने, आवेग को सुधरने और विकार की प्रगति को धीमा करने के उद्देश्य से है.
मिर्गी के दौरे आनेवाले व्यक्ति की बुद्धि में दोष हो यह जरूरी नहीं. जब दौरों को अच्छी तरह से नियंत्रित किया जाता है वह पूरी तरह सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते है. किन्तु, उन्हें विशिष्ट प्रतिबंधों का पालन करना होता है ताकि भविष्य में मिर्गी के दौरे न पड़े.
फ़ीट या मिर्गी के दौरे जैसी घटनाएँ तनाव की प्रतिक्रिया हो सकती है. मनोचिकित्सा एवं तनाव प्रबंधन से ऐसी घटनाओं पर दीर्घकालीन राहत मील सकती है.
पढाई में ख़राब प्रदर्शन का पूरी तरह से मूल्यांकन किया जाना चाहिए. उपरोक्त मामले में पाए जानेवाले सर्वसामान्य कारन निम्नानुसार है :
एकाग्रता में कमी अतिसक्रिय विकार (A.H.D.) - इसके मुख्य लक्षण कमजोर एकाग्रता, ध्यान देने का कम समय, आसानी से भूलना, अधूरा काम, नियम और संज्ञाओं की अल्प समझ, भुलक्कड़पन आदि है. ऐसे बच्चे अतिसक्रिय होते है, किसी एक जगह पर नहीं बैठते, अक्सर अनाड़ी और आवेगी होते है.
विशिष्ट अध्यापन विकलांगता (लर्निंग डिसएबिलिटी) - इसके वैशिष्टय है पढ़ने, लिखने और गणित में बदतर प्रदर्शन (उम्र और कक्षा की आवश्यकता से बदतर)
जब लड़का अथवा लड़की को समझदारी प्राप्त होनेवाली उम्र में बिस्तर गीला करना अथवा रात में पेशाब पर नियंत्रण नहीं होता (कभी कभी दिन में भी) तो उसे नोक्टर्नल ऐन्यूरेन्सिस कहा जाता है. भारतीय बच्चो में, ५ साल की उम्र के बाद पेशाब पर नियंत्रण नहीं होना एक समस्या है जिसे वैद्यकीय रूप से देखना चाहिए. यदि बच्चे को पूर्ण मूत्राशय नियंत्रण प्राप्त नहीं हुआ है तो रत में पेशाब करना प्राथमिक समझना चाहिए. आचरण चिकित्सा और दवाइयों की सहायता से इस समस्या पर प्रभावी उपचार किये जा सकते है.
हाँ यह एक अवस्था हो सकती है जिसे ओसीडी कहा जाता है. ऐसे मरीजों में संक्रमण होने अथवा प्रदुषण होने के विचार बार-बार आते रहते है. किये गए हर काम पर उन्हें शक होता रहता है, और उन्हें खुद पर भरोसा नहीं होता. कुछ मरीजों में तर्कहीन यौन अथवा धार्मिक विचार हो सकते है. ऐसे मरीजों को दवाइयों और मनोचिकित्सा के उपचारो की जरुरत है.
यौन समस्याएँ मनोवैज्ञानिक संघर्ष से उत्पन्न हो सकती है. अवसाद जैसी मानसिक बीमारी के यह प्रमुख लक्षण हो सकते है. सामान्य कामुकता के बारे में जानकारी कई गलतफहमी और अकार्यक्षमता से बचती है.
बच्चे के जन्म के बाद, महिलाओ में अवसाद और बदली हुई मानसिकता एक आम प्रसूतिपश्चात समस्या है. इस स्थिति के लिए प्रसूति और बच्चे की देखभाल से सम्बंधित तनाव, और आनुवंशिक गड़बड़ी के साथ जुड़े हार्मोनल परिवर्तन जिम्मेदार है. प्रसवात्तर कालावधी में मानसिक बीमारी भी उपज सकती है. आत्महत्या या बच्चे को नुकसान का खतरा ज्यादा होता है, और इसीलिए इस पर आपातकालीन तौर पर इलाज किया जाना चाहिए.
आत्महत्या का प्रयास कायरताभरा कृत्य नहीं है, अपितु इसका कारन अंतस्थ अवसाद है. बहादुर या दॄढ इच्छाशक्ति होना आत्महत्या करने का विचार अथवा कल्पना की प्रतिरक्षा नहीं है. मरीज द्वारा प्रदर्शित की गई ऐसी किसी भी इच्छा को डॉक्टर को बताना चाहिए ताकि पर्याप्त कदम उठाये जा सकते है.
जब लक्षणों का एक समूह काम और सामाजिक आचरण में गिरावट की ओर अग्रसर होता है तो उसमे दवाइयों के उपचार की भूमिका अहम् होती है. ऐसी समस्याएँ न तो काल्पनिक है और न ही जालसाजी है और इसीलिए उन्हें अपने आप दूर नहीं किया जा सकता. गंभीर भावनात्मक उथल-पुथल के बावजूद व्यक्ति मानसिक संतुलन बनाये रख सकता है और शारीरिक तौर पर सामान्य दिखाई दे सकता है, और इसीलिए कोई सहानुभूति नहीं प्राप्त करता. जब वह शिकायत करता है, आम तौर पर ऐसी सलाह दी जाती है जिससे नुकसान हो सकता है (उदा-"सकारात्मक सोच रखो", "तनाव मत लो", "अपने मन को मजबूत करो" आदि)
ऐसे लक्षणों से छुटकारा पाने के लिए मनोचिकित्सक द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार कुछ वैद्यकीय हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है.
कुछ समस्याए जैसे की आतंरिक संघर्ष, कार्यस्थल में तनाव, वैवाहिक सम्बन्ध में कटुता, पालकत्व व्यव्हार आदि में परामर्श (काउन्सिलिंग) द्वारा सहायता प्राप्त की जा सकती है. आजकल काउन्सिलिंग एक पैंतरा बन गया है इसीलिए इस बात का ख्याल रखना चाहिए की वह योग्य पेशेवर द्वारा कराया जाना चाहिए.
कई मानसिक विकारो में दवाइयाँ उपचार का अनिवार्य हिस्सा है. दवाइयों द्वारा मस्तिष्क में मौजूद रसायनो का संतुलन रखा जाता है और सामान्य स्थिति (उदा. मधुमेहरोधी दवाइयों से मधुमेही शर्करा के स्टार को नियंत्रण करने में मदद मिलाती है) प्राप्त करने में मदद मिलाती है. यह लक्षण के मरीज के नियंत्रण से परे है और इसलिए दवाइयों को प्राथमिकता मिलाती है.
ऊपर बताई हुई कई तकनीक, खासकर योगाभयास और कसरत द्वारा साधारण रूप से स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जाता है, और स्वास्थ्यपूर्ण जीवनशैली से प्रकार है. ये सब विशेष समस्याओ का उपचार नहीं है. विभिन्न प्रकार के बीमारियों के लिए विभिन्न प्रकार की दवाइयाँ और मनोचिकित्सा की जरुरत होती है.
शायद, पिछली बार उसे मनोवैज्ञानिक समस्याओ का अचानक मामूली समस्या झेलनी पडी थी, लेकिन इस वक्त उतनी ही तीव्रता नहीं है. वास्तव में, संशोधन से यह पाया गया है की हर एक नयी घटना जे साथ, बीमारी की तीव्रता और कालावधी में वृद्धि हो सकती है.
यह प्रत्येक मनोरोग विकार के लिए बदलता रहता है. एक योग्य मनोचिकित्सक के सख्त पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के तहत उसे जरी रखना चाहिए. दवाइयाँ जरी रखने में आई हुई किसी भी समस्या की चर्चा मनोचिकित्सक के साथ की जानी चाहिए क्योंकि वह आपकी समस्या के लिए कोई समाधान की पेशकश कर सकेंगे. दवाइयाँ अपने निर्णय के अनुसार बदलनी या रोकी नहीं जानी चाहिए.
दवाइयों के प्रत्येक समूह में कुछ सामान्य दुष्परिणाम है और कुछ दुष्परिणाम विशिष्ट दवाइयों से सम्बंधित है. इसके बारे में आपके मनोचिकित्सक से चर्चा दुष्परिणामों के बारे में बताएँगे. दुष्परिणाम मरीजों के विशेष शरीरावस्था पर भी निर्भर करता है.
यह जरूरी नहीं है की सभी दवाइयों से नींद आ जाए. नै दवाइयों में से कई दवाइयाँ मरीज की रोजमर्रा के कामकाज में दखलंदाजी न करते हुए उसकी सक्रीय जीवनशैली के लिए अनुकूल रूप से काम करने के लिए तैयार की गई है. कई मरीजों को शुरुआत में नींद का अनुभव होता है, लेकिन यह परिणाम जल्द ही नष्ट होता है. फिर भी, आपको अगर समस्या का अहसास होता है, तो कृपया आप अपने मनोचिकित्सक के साथ चर्चा करे.
दवाइयों के दुकानदार और मरीज द्वारा मनोरोग की दवाइयों को "नींद की गोलियाँ" कहना यह मात्र एक ढीली संज्ञा है और गलत ढंग से कहा जाता है. दवाइयों का उद्देश्य नींद बढ़ाना नहीं है, बल्कि अन्तस्थ रासायनिक असंतुलन को ठीक करना है.
मनोचिकित्सकीय दवाइयाँ किसी अन्य प्रकार की दवाइयों की तरह ही है (उदा. हृदय अथवा पेट के लिए दवाइयाँ). कोई उपचार जिससे महत्वपूर्ण रहत प्राप्त होती है, तो उससे भले ही मामूली अस्थायी सहपरिणाम होते है, तो वह स्वीकार्य है. यदि आपने हानी:लाभ का प्रमाण देखा तो यही बात मनोरोग दवाइयों के लिए लागू होती है. सर्वसामान्य रूप से मनोचिकित्सा से संबंधित कलंक के लिए मनोरोग की दवाइयाँ एक बलि का बकरा बनाई गई है. दवाइयाँ, अगर डॉक्टर के देखरेख में ली गई, तो उससे जैसा की माना जाता है वैसा गुर्दे, यकृत अथवा हृदय पर असर नहीं होता. आपके द्वारा जो दवाइया ली जा रही है उसकी समय-समय पर निगरानी के लिए यदि जरुरत हो तो अपने डॉक्टर के साथ चर्चा करे.
यह बिना किसी आधार के प्रचार किया जानेवाला मिथक है. कई लोगों ने यह दवाइयाँ पूरी जिंदगी, करीबन ३०-४० वर्ष तक ली है और उनके मस्तिष्क पर कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं हुआ है. बहुत वर्षो के संशोधन और ध्यायन के पश्चात यह दवाइयाँ योग्य पर्यवेक्षण के अनुसार लेनी चाहिए। वैसे ही, बच्चों की समस्याओ पर सहायता करने के लिए विशेष दवाइयाँ बनाई गई है.
कोई भी अपनी इच्छा और विश्वास के अनुसार वैकल्पिक चिकित्सा का चयन कर सकता है, लेकिन विज्ञापन और अफवाहों के आधार पर नहीं. कोई भी चिकित्सा दुष्परिणामों से मुक्त नहीं होती, उपर्युक्त्त भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. एक बार डायग्नोज होने पर, डिप्रेशन, मैनिया और सिजोफ्रेनिया की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए किया गया विलम्ब का किसी भी तरह समर्थन नहीं किया जा सकता, और इसके आलावा, स्वस्थ होने की गति सामान रूप से महत्वपूर्ण है.
आपको किसी भी विशेषज्ञ डॉक्टर के साथ अपनी चिक्तिसा बदलने के निर्णय की चर्चा करनी चाहिए. मनोचिकित्सक के पर्यवेक्षण के बगैर ऐलोपैथिक दवाइयाँ शुरू न करे.
वैद्यकीय चिकित्सा के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले सभी घटक स्वभाव से "रसायन" होते है. केवल उनका स्त्रोत बदलता है, जैसे जड़ीबूटी, प्राणी अथवा रासायनिक. मनोरोग के दृष्टिकोण से जल्द और पूर्ण रूप से ठीक होना महत्वपूर्ण है. एलोपैथिक दवाइयाँ कई वर्षो के संशोधन से विशुद्ध की गई है. सभी उपचारो के अपने अपने हिस्से के प्रतिकूल परिणाम भी है.
इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरपी में उपकरण द्वारा मस्तिष्क में बहुत कम मात्रा में विध्युतधारा प्रवाहित कर झटके जैसी गतिविधियाँ शुरू की जाती है. इस झटके जैसी गतिविधि से मस्तिष्क की कोशिकाओं और न्यूरोट्रांसमीटर में परिवर्तन लाया जाता है जिससे मानसिक रोगियों के लक्षणों में सुधर करने में सहायता मिलती है.
कई शारीरिक बीमारियों में विध्युत प्रवाह का उपयोग किया जाता है, इसलिए झटका एक गलत संज्ञा है.
कई मानसिक स्थितियों में इसीटी एक बहुत ही वैज्ञानिक चिकित्सा विकल्प है, और पूरे विश्व में झटका प्रयोग किया जाता है. कई वजहों के कारण, जिसमे उससे सम्बंधित कलंक और डर शामिल है, रोजमर्रा के वैद्यकीय व्यव्हार में इसका इस्तेमाल करने का प्रमाण काम हो गया है, लेकिन मनोरोग आपात स्थिति में कुछ मामलों में आज भी यह एक बेहतर विकल्प है.
नहीं, इसीटी चिकित्सा का एक अपेक्षाकृत सुरक्षित तरीका है. फिल्मो में दिखाया गया इसीटी सनसनी फैलानेवाला है. वास्तविक जीवन में मरीज को बेहोशी और मांसपेशी में राहत दिलाई जाती है. इसलिए, दर्द के घटक काम है.
इसीटी एक सुरक्षित चिकित्साप्रणाली है. लेकिन इसे आख़री इलाज के तौर पर नहीं मानना चाहिए. जब मरीज के मन में सक्रीय आत्महत्या के विचार आते है, अथवा अत्याधिक आक्रामक और हिंसक होता है, तब यह अत्यंत प्रभावी होता है. यह प्रतिरोधी मामलों में भी सहायक होता है.
मरीज को सिरदर्द और मांसपेशीयो में दर्द महसूस होता है जो की दर्दनिवारक गोलियों से काम होता है. कुछ असंतुलन और स्मृति की समस्याएँ उपचार के बाद तुरंत दिखाई देती है, यह परिणाम चिकित्सा के बाद जल्द ही नष्ट हो जाते है.
इसीटी के सनसनीखेज नाटकीय चित्रण ने आम जनता में काफी गलतफहमी फ़ैली हुई है. अनुसंधान द्वारा यह दिखाया गया है की वैज्ञानिक रूप से आयोजित इसीटी में किसी तरह की मस्तिष्क की हनी नहीं होती है.
साधारण तौर पर इसीटी का कोर्स मरीज की बीमारी और ठीक होने की प्रक्रिया के आधार पर निश्चित किया जाता है. इस कोर्स में ६-१० इसीटी शामिल हो सकती है. कुछ मरीजों को शायद इसीटी पर लगातार ठीक रखने के लिए रखा जा सकता है. यह सोचना जरूरी नहीं की यह हमेशा आवश्यक है.
हाँ, ऐसी बीमारिया (जो पुराने, गंभीर और अब भी अस्तित्व में है, जिनके ऊपर ज्ञान उपचार पद्धति द्वारा उपचार किये गए हो, और फिर भी गंभीर बीमारी मौजूद है, ऐसी स्थिति में डिप्रेशन और ओसीडी (मनोशल्यचिकित्सा) के उपचारो के लिए कुछ शलयचिकित्सा उपलब्ध है.
डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (डीबीएस), जो की नै तकनीक है, जिसका अभी मूल्यांकन किया जा रहा है, वह शायद कुछ विशिष्ट मनोरोग स्थिति में मददगार हो सकती है.
आरटीएमएस एक गैर-आक्रामक तकनीक है जिससे सर के बाहरी आवरण पर स्थानीय चुंबकीय क्षेत्र निर्माण कर मस्तिष्क की कोशिकाओं को उत्तेजित किया जाता है.
डिप्रेशन से पीड़ित मरीजों के लिए यह सहाय्यक हो सकता है, और इसका उपयोग अन्य विकारो में करने के लिए मूल्यांकन किया जा रहा है.
मनोचिकित्सा सामान्य रूप से "वार्तालाप चिकित्सा" के रूप में जानी जाती है. इसमें, मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो द्वारा कुछ मानसिक विकारो का प्रबंधन करने के लिए किया जाता है. मनोचिकित्सा कुशल पेशेवरों द्वारा की जाती है.
कॉग्निटिव बिहेवियर थेरापी (सीबीटी) को विस्तृत रूप से मनोचिकित्सा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. यह सोच और व्यवहार के सिद्धांतो पर आधारित है.
संमोहन एक चिकित्सकीय तकनीक है जिसे कुछ विशिष्ट प्रकार के मानसिक समस्याओ पर उपयोग किया गया है. यह एक आम गलत धारणा है की इससे सभी गहरे मानसिक संघर्षो को हटाया जा सकता है.
इंटरनेट पर बटन दबाते ही लोगो को कई सारी जानकारी प्राप्त होती है. परंतु, यह विश्वसनीय और अविश्वसनीय जानकारी का मिश्रण है. अक्सर यह जानकारी भ्रामक हो सकती है. इससे किसी के उपचार निर्धारित नहीं किये जा सकते. यह बेहतर है की उपचार करना मनोचिकित्सक के लिए छोड़ दे.
दवाई बंद करना अथवा दवा की खुराक अपने निर्णय से कम करने पर बीमारी के लक्षणों के पुनःप्रादुर्भाव का खतरा होता है. अचानक दवाई लेना बंद करने से दवा द्वारा होनेवाली असहजता (डिस्कम्फर्ट) एवं होनेवाले लक्षणों का अतिरिक्त जोखिम होता है. यदि आपको अपनी हाल में चल रही दवाइयों, के बारे में कुछ समस्या है, तो कृपया उसके बारे में अपने मनोचिकित्सक के साथ विस्तार में चर्चा करे. आज, एक ही समस्या का उपचार करने के लिए अनेक दवाइयाँ उपलब्ध है. ऐसी दवाइयाँ जो आपकी बीमारी के लिए अधिक बहेतर है और कम दुष्परिणाम से वह निर्धारित की जा सकती है अथवा खुराक की मात्रा का समायोजन किया जासकता है.
अगली खुराक दोगुना न लें. अपनी अगली खुराक नियमित समय पर और सुझाये अनुसार ले. उस अंतराल में, अपने लक्षण जैसे की चिड़चिड़ापन, अनिद्रा अथवा अन्य कोई गत लक्षण पर ध्यान रखे. यदि कोई लक्षण नजर आता है, तो अपने मनोचिकित्सक से परामर्श ले.
कुछ प्रकार की दवाइयों को अचानक रोक देने से ऐसे लक्षण नजर आते है. यह बीमारी की शुरुआत का लक्षण हो सकता है. यह सुनिश्चित करें की आप नियमित खुराक लेना निम्नलिखित वजहों से न भूले :
(१) अनुपलब्धता
(२) प्रयोग करने के लिए जानबूजकर दवाई न लेना, तथा
(३) कमजोर पर्यवेक्षण और जाँच
उपचार की समाप्ति का निर्णय उपचार कर रहे मनोचिकित्सक द्वारा ही किया जाना चाहिए। आम तौर पर "वापसी" लक्षणों से बचने के लिए दवाओं को धीरे-धीरे कम किया जाता है।
कुछ बीमारियों में दवाइयाँ जिंदगीभर लेनी पड़ती है ताकि लक्षणों को परे रखा जा सके और पुनःप्रादुर्भाव अथवा पुनरावृत्ति रोकी जा सके. यह वैसा ही है जैसे उच्च दाब और मधुमेह को दूर रखने के लिए दवाइयाँ लेनी पड़ती है.
इस प्रकार अधिकांश मानसिक बीमारीयाँ जिन्हे कुछ माह से लेकर कुछ वर्षो की कम अवधि के लिए उपचारो की जरुरत होती है. आवश्यकता पड़ने पर वैद्यकीय उपचारो को अन्य मनोवैज्ञानिक उपचारो द्वारा समर्थन करना चाहिए.
मस्तिष्क पर असर करनेवाली दवाइयाँ आसानी से दुकानदारों द्वारा नहीं बेची जा सकती है. मान्यताप्राप्त डॉक्टर की पर्ची के बगैर ऐसी दवाइयाँ बेचना कानून द्वारा निषिद्ध है. इसमें से कुछ दवाइयों पर कड़े नियमो द्वारा नियंत्रण किया जाता है इसी लिए सभी दवाइयों के दुकानों में उन्हें संग्रहीत नहीं कर सकते है. कृपया अपनी वर्त्तमान स्थिति के बारे में अपने मनोचिकित्सक से परामर्श करे.
कभी-कभी, खांसी की दवाई और सामान्य सर्दी के लिए दवाइयाँ दोनों में कुछ घटक होते है जो अत्यधिक नींद की वजह हो सकते है. अन्यथा, वह चल रही मनोरोग की दवाइयों के साथ सुरक्षित रूपसे ली जा सकती है.
क्या मैं अपनी नियमित दवाइयों के साथ वेदनाशामक और ऐंटीबायोटिक्स ले सकता हूँ ?
सामान्य बीमारियाँ जैसे की बुखार, सर्दी की तथा अन्य तरह की दवाइयाँ जो काउंटर पर बेची जाती है वह निर्धारित मनोरोग चिकित्सा की दवाई के साथ अच्छा मेल-जॉल रखती है. जब भी आप किसी अन्य डॉक्टर से परामर्श लेते है तब आप अभी जो दवाइयाँ ले रहे है उसके बारे में उन्हें सूचित करना न भूले.
अधिकांशतः अन्य शारीरिक बीमारी के लिए तत्काल ध्यान देने की जरुरत होती है. कोई भी सीधे सम्बंधित डॉक्टर से बेझिझक परामर्श कर सकता है. जब भी आप किसी अन्य डॉक्टर से परामर्श लेते है तब आप अभी जो दवाइयाँ ले रहे है उसके बारे में उन्हें सूचित करना न भूले.
अन्य डॉक्टर के साथ मनोरोग की दवाइयों के बारे में चर्चा करे. अगर डॉक्टर को यह लगता है की आपके मनोचिकित्सक से राय लेना जरूरी है, तो आमतौर पर वह आपको ऐसा करने के लिए बता देंगे. अपने मनोचिकित्सक के साथ अगले निर्धारित साक्षात्कार के समय, दवाइयों के नोट्स और पर्चियाँ साथ ले जाये और विस्तृर विचारविमर्श करे.
किसी भी स्थिति में अन्य दवाइयों को मिलाकर ज्यादा दवाइयाँ हो रही है यह सोचकर, मनोरोग दवाइयाँ न रोके अथवा उनमें परिवर्तन न करे.
सभी दवाइयाँ सुरक्षित स्थान पर संरक्षित रखे ताकि उनका जाने या अनजाने में गलत इस्तेमाल न किया जा सके.
अपने डॉक्टर से जाँच करे की क्या आप गाड़ी चला सकते है. जब आप दवाइयाँ लेना शुरू करते है तो गाड़ी चलने से बचाना बेहतर है. जब आप आश्वस्त होते है की आप दवाइयों पर ठीक है एवं सचेत है, तो आप फिर से शुरू कर सकते है. कई बार आप एक विशिष्ट समूह की दवाइयाँ और भारी खुराक ले रहे होते है जो आपकी सजगता प्रभावित करती है. ऐसे समय में डॉक्टर आपको गाड़ी चलाने से परहेज करने के लिए कह सकते है.
शराब का बहिष्कार : किसी सामाजिक समारोह में एक या दो ड्रिंक्स लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ले. शराब पीने के लिए अपनी खुराक में हेरफेर न करे.
महिलाओ के लिए : आप अपने मासिक धर्म के चक्र में परिवर्तन की अपेक्षा कर सकते है. यह प्रायः बीमारी अथवा उपचारो की वजह से होता है, और इसमें कोई चिंता करने की बात नहीं है. कोई भी मूल्यांकन करने के लिए भागदौड़ करने से पहले अपने मनोचिकित्सक को जरूर सूचित करे.
गर्भावस्था : अगर आप बच्चे के लिए योजना बना रहे है तो अपने डॉक्टर को सूचित करे ताकि आपकी गर्भावस्था के दौरान आप सुरक्षित दवाइयाँ पर रहे. अन्यथा, प्रसव उम्र में यह सुनिश्चित करे की आपकी गर्भनिरोधक पद्धति पूरी तरह सुरक्षित है.
अन्य विशिष्ट सावधानियों के बारे में आपके डॉक्टर द्वारा आपको बताया जाएगा।
हाँ, इसे मेन्टेनन्स उपचार कहा जाता है. बीमारी में सुधार और पुनःप्रादुर्भाव की रोकथाम के लिए देख-रेख में चिकित्सा जरूरी है. चिकित्सा की कालावधी आपकी उपचार कर रहे डॉक्टरों द्वारा निश्चित किया जायेगा.
आपके मनोचिकित्सक से साक्षात्कार करना जरूरी है :
(१) आपकी प्रतिक्रिया के आधार पर, खुराक की मात्रा में परिवर्तन समय समय पर जरूरी है.
(२) दवाइयों में परिवर्तन अथवा कमी अकसर आवश्यक है.
(३) कुछ दवाइयों के लिए समय-समय पर प्रयोगशाला की निगरानी जरूरी है.
(४) दवाइयों के दुष्परिणाम को प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम करने के लिए.
(५) मनोरोग चिकित्सा के क्षेत्र में नवनीतम घटनाओं और प्रगति से आप वंचित रह सकते है.
(६) टोलरेन्स और दवा की आदत होने का आपको खतरा हो सकता है.
(७) आप परामर्श और मनोचिकित्सा से चूक सकते है.
यदि खुराक भी बदली गई, तो भी मनोचिकित्सा द्वारा आपकी नियमित रूप से जाँच जरूरी है. अतः स्वयंचिकित्सा का सहारा न ले. इससे आपको ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
उच्च रक्त दाब और मधुमेह जैसी बीमारी पर दवाइयों को (लत) कहा जा सकता है:
(१) सभी लक्षण ठीक नहीं किऐ जा सकते, उनमे से कुछ पर केवल नियंत्रण पाया जा सकता है.
(२) कुछ बीमारियों में कड़े आनुवंशिक और भौतिक घटक होते है. इसलिए, दवाई के अलावा उपचारो के अन्य प्रकार (जैसे की मनोचिकित्सा) का मर्यादित मूल्य है.
(३) प्रदीर्घ उपचार न की हुई बीमारी से राहत महसूस होने पर, पुनःप्रादुर्भाव की रोकथाम करने के लिए दीर्घकालीन उपचारो की आवश्यकता होगी.
(४) बाइपोलर डिसऑर्डर का स्वरूप चक्रीय होता है, इसलिए इन्हे मूड स्टेबलाइजर द्वारा रोकथाम की जाती है.
कई महत्वपूर्ण उपाय उपलब्ध है जो सुधार को बनाए रखने में मदद करते है. चिकित्सा करनेवाले मनोचिकित्सक अथवा अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर द्वारा इनका संकलन आपके उपचार प्रयोग में किया जा सकता है. यह उपाय निजी, पारस्परिक, सामाजिक और कार्यस्थल में संघर्ष कम करने में मदद करते है.
सहायता समूहों द्वारा इस तरह के कई मुद्दों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है. उदा. के तौर पर अल्कोहोलिक ऐनॉनिमस (एए) ऐसी एक संस्था है जो शराब संबंधी समस्याओ के क्षेत्र में काम करती है.
सामाजिक और व्यावसायिक पुनर्वास दोनों का ही स्वस्थ होने की प्रक्रिया में बराबरी का हिस्सा है.
व्यावसायिक कार्यसमस्या जो मानसिक विकार से पैदा होती है, उसे कम करने के लिए उपचार जरूरी है. विकार जिनके ऊपर इलाज नहीं किया गया है वह निम्नलिखित काम से सम्बंधित मुद्दों की ओर अग्रसर होते हैं जैसे कि :
(१) अनुपस्थिति
(२) ध्यान केंद्रित करने में कमी और काम का कम उत्पादन
(३) निर्णय लेनेकी क्षमता बिगड़ना
(४) असफलताएँ
(५) नौकरी गवाना
(६) वित्तीय समस्याए, पारस्परिक संघर्ष, सम्मान और दर्जे की हानि
बीमारी का स्वरूप और गंभीरता पर कुल परिणाम निर्भर करता है. इसीलिए, शायद कुछ समायोजन काम के स्थान पर करना जरूरी होता है. काम के स्थल पर असर करनेवाले उपचारो से सम्बंधित मुद्दे तुलना करने पर इलाज न किआ हुआ मानसिक बीमारियों की वजह से उपस्थित होनेवाले मुद्दों से गौण होते है, और उनका इलाज मनोचिकित्सक की देखरेख में किया जा सकता है.
यह एक मिथक है की शादी किसी मानसिक बीमारी का इलाज है. मरीज द्वारा प्यार, शादी और कामजीवन के बारे में गुरुपयुक्त बाते की जा सकती है, जो की अंतस्थ विचार या मानसिक अशांति का हिस्सा हो सकता है.
मानसिक बीमारी को पूरी तरह से ठीक करने के लिए उपचार करना जरूरी है और ठीक करने के लिए शादी करने के विचार से भागदौड़ न करे.
शादी के द्वारा व्यक्तिगत, सामजिक और वित्तीय जिम्मेदारियां बढ़ती है. इसलिए, इसका निर्णय उपचार कर रहे मनोचिकित्सक के साथ चर्चा करने के बाद ही लिए जाए. कई घटक जैसे की लक्षण, उपचार, कार्यक्षमता का स्तर आदि का भावी सहजीवी की और उसके परिवार के साथ विचार और चर्चा करना जरूरी है. ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय सामाजिक दबाव के तहत नहीं लेना चाहिए. परिवार के लिए योजना बनाने का निर्णय भी उपचार कर रहे मनोचिकित्सक के साथ चर्चा के बाद लेना चाहिए.
काम अथवा समाज में धूल-मिलने के प्रति प्रेरित न होना यह मूलभूत बीमारी का हिस्सा हो सकता है. बीमारी के इस अवशिष्ट हिस्से द्वारा प्रारंभी लक्षणों से राहत की तुलना में बेहतर स्वास्थ्य की दशा शायद नहीं दिखाई जा सकती.
यह लक्षण दवाइयाँ अथवा इसीटी से संबंधित नहीं है.
एक केंद्र, जहाँ पर मरीज को वैद्यकीय उपचारो के अलावा, अपने दिन का आयोजन करने में, उसे दूसरो के साथ बात-चीत करने में कौशल्य प्रदान किया जाता है, और कुछ रचनात्मक गतिविधियाँ पूर्ण करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, उसे पुनर्वास केंद्र कहा जाता है.
यह आस्थापना किसी अस्पताल की तरह नहीं है, किन्तु एक घर जैसी है.